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अ॒हं भूमि॑मददा॒मार्या॑या॒हं वृ॒ष्टिं दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य। अ॒हम॒पो अ॑नयं वावशा॒ना मम॑ दे॒वासो॒ अनु॒ केत॑मायन् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aham bhūmim adadām āryāyāhaṁ vṛṣṭiṁ dāśuṣe martyāya | aham apo anayaṁ vāvaśānā mama devāso anu ketam āyan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒हम्। भूमि॑म्। अ॒द॒दा॒म्। आर्या॑य। अ॒हम्। वृ॒ष्टिम्। दा॒शुषे॑। मर्त्या॑य। अ॒हम्। अ॒पः। अ॒न॒य॒म्। वा॒व॒शा॒नाः। मम॑। दे॒वासः॑। अनु॑। केत॑म्। आ॒य॒न् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:26» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अहम्) सबका धारण करने और सब का उत्पन्न करनेवाला ईश्वर मैं (आर्य्याय) धर्म्मयुक्त गुण, कर्म्म और स्वभाववाले के लिये (भूमिम्) पृथिवी के राज्य को (अददाम्) देता हूँ (अहम्) मैं (दाशुषे) देनेवाले (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (वृष्टिम्) वर्षा को (अनयम्) प्राप्त कराऊँ (अहम्) मैं (अपः) प्राणों वा पवनों को प्राप्त कराऊँ जिस (मम) मेरे (वावशानाः) कामना करते हुए (देवासः) विद्वान् लोग (केतम्) बुद्धि वा जनाने के लिये (अनु, आयन्) अनुकूल प्राप्त होते हैं, उस मुझको तुम सेवो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो न्यायकारी स्वभाववाले के लिये भूमि का राज्य देता, सब के सुख के लिये वृष्टि करता और सब के जीवन के लिये वायु को प्रेरणा करता है और जिसके उपदेश के द्वारा विद्वान् होते हैं, उसी की निरन्तर उपासना करो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽहमार्य्याय भूमिमददामहं दाशुषे मर्त्याय वृष्टिमनयमहमपोऽनयं यस्य मम वावशाना देवासः केतमन्वायंस्तं मां यूयं सेवध्वम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) सर्वधर्त्ता सर्वस्रष्टेश्वरः (भूमिम्) पृथिवीराज्यम् (अददाम्) ददामि (आर्य्याय) धर्म्यगुणकर्मस्वभावाय (अहम्) (वृष्टिम्) (दाशुषे) दानशीलाय (मर्त्याय) मनुष्याय (अहम्) (अपः) प्राणान् वायून् वा (अनयम्) प्रापयेयम् (वावशानाः) कामयमानाः (मम) (देवासः) विद्वांसः (अनु) (केतम्) प्रज्ञां प्रज्ञापनं वा (आयन्) प्राप्नुवन्ति ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो न्यायशीलाय भूमिराज्यं ददाति सर्वस्य सुखाय वृष्टिं करोति सर्वेषां जीवनाय वायुं प्रेरयति यस्योपदेशद्वारा विद्वांसो भवन्ति तमेव सततमनूपाध्वम् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो न्यायी स्वभावाच्या माणसाला भूमीचे राज्य देतो, सर्वांच्या सुखासाठी वृष्टी करतो, सर्वांच्या जीवनासाठी वायूला प्रेरणा देतो, ज्याच्या उपदेशाने विद्वान बनता येते, त्याचीच सतत उपासना करा. ॥ २ ॥